Sunday, July 30, 2017

वात्रटिका

*वात्रटिका*
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कुठं गेलायं कुणास ठाऊक?
मेघराजानं आमच्याकडं पाठ भिरवली?

पोटाचा विचार न करता बँकेच्या
दारात विम्यासाठी रांग लागली।

प्रेम।
९६०४०००९६९
३०/०७/०१७

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